Monday, February 7, 2011

राधा गोकुल में नीर बहाए

कान्हा काहे को तू मुस्काए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे

रानी हजारों तेरी रुक्मण पटरानी
तेरे सिवा ना किसी की राधारानी
कहे मोहन कोई ढूंड  के लाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे

तेरे महल कान्हा नित ही दिवाली
राधा की तुम बिन पूनम भी काली
रो रो नैनों की जोत गंवाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे
लाखों को पार कान्हा तूने उतारा
बस जीते जी तूने राधा को मारा
फिर क्यों पालनहार कहाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे

*** प्रदीप नील  हिसार हरियाणा   09996245222***

14 comments:

  1. अच्छा गीत है...बधाई...

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  2. बहुत आभारी हूँ डा.शरद जी. कृपया लौट कर आते रहें.

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  3. wow....... wat a poetry.... uncle u r a great poet...... GUNJAN

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  4. bahut hi sundar likha aapane
    check out mine
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

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  5. लाखों को पार कान्हा तूने उतारा
    बस जीते जी तूने राधा को मारा
    फिर क्यों पालनहार कहाए रे
    राधा गोकुल में नीर बहाए रे


    बहुत सुंदरता से आप ने राधा के दर्द को व्यक्त किया है ...........

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  6. bahut sunder bhazan likhte hain aap..badhai pradeep ji..

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  7. अनु और डा. कविता जी आप का बहुत बहुत आभारी हूँ . कृपया आते रहें .कुछ समय बाद नई रचनाए पोस्ट करूँगा

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  8. सुंदर रचना पहली बार आया आपके ब्लाग पर अच्छा लगा

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