Wednesday, August 23, 2017

मैं नटनी थी , मैं ठगनी थी , फिर भी धोखा खा गई
घर से चली थी हरि ठगन को , खुद को ठगा के आ गई .

सोचा तो था नैन मिलाके , हरि को अपना बना लूंगी
या थोडा सा नाच और गा के , अपना उसे बना लूंगी
ठगों का ठग हंस के यूं बोला - अच्छा तो ठगनी आ गई
घर से चली थी हरि ठगन को , खुद को ठगा के आ गई .

ऐसी धुन फिर छेड़ी उसने , खुद को ही मैं भूल गई
ना जाने कब आंचल ढलका , कहाँ मेरी पाजेब गिरी
पवन हिंडोले उड़ने लगी मैं , ऐसी खुमारी छा गई
घर से चली थी हरि ठगन को , खुद को ठगा के आ गई .

भेद है इसमें कितना गहरा , दिखने में तो बात जरा सी
वो कहे मैं दास तुम्हारा , मैं बोलूं मैं तेरी दासी
मैं बडभागन हुई सुहागन , जब से उसको पा गई
घर से चली थी हरि ठगन को , खुद को ठगा के आ गई .

Thursday, January 14, 2016

राधा की हर सांस पुकारे,मोहन,मोहन

राधा की हर सांस पुकारे,मोहन,मोहन,मोहन,मोहन
मोहन की हर सांस पुकारे, राधा,राधा,राधा,राधा
कौन बताए किसको पुकारा,किसने कम या ज़्यादा
राधा,मोहन,मोहन राधा,मोहन मोहन राधा.

प्राण  तो फूंके श्यामा  उसमें,बंसी बेशक श्याम की
जब से श्याम हुआ  श्यामा का,और श्यामा हुई श्याम की
दोनो पूरे,दोनो अधूरे,ना पूरा कोई आधा
राधा,मोहन,मोहन राधा,मोहन मोहन राधा.

कोई कहे राधा है सुंदर, बनवारी तो काला
कोई कहे वो निरी ग्वालन, सुंदर मुरली वाला
राधा बोले मोहन सुंदर,मोहन बोले राधा
राधा,मोहन,मोहन राधा,मोहन मोहन राधा.

भक्त पुकारें राधा को तो मोहन दौडे आएं
और मोहन का ध्यान करो तो राधा नज़र समाए
देहि  दो पर जान एक है, मोहन कहो या राधा
राधा,मोहन,मोहन राधा,मोहन मोहन राधा.

Sunday, January 10, 2016

राधा री क्यूं हुई बावरी,रो रो नैना खोवै ( प्रदीप नील )

राधा री क्यूं हुई बावरी,रो रो नैना खोवै
निर्मोही कब हुआ किसी का,तेरा कैसे होवै

तू क्या सोचै एक सांवरी,तू ही है घनश्याम  की
हुई दीवानी लाख गोपियां, बरसाने नंदगाम की
मोहन मोहन की रट लागी,जागै चाहे सोवै
राधा री क्यूं हुई बावरी,रो रो नैना खोवै

काज़र कारे नैन तिहारे,रो रो हो गए लाल री
ऐसी भी क्या प्रीत बावरी, हाल हुआ बेहाल री
माथे लिखा बिछोडा तेरे, आंसू कैसे धोवै
राधा री क्यूं हुई बावरी,रो रो नैना खोवै                                                                  

वो छलिया पूरी दुनिया को, ऐसे ही तरसाए
नज़र समाए बंसी बज़ाए, लेकिन हाथ ना आए
उस निर्मोही खातिर पूरी, दुनिया नैन भिगोवै
राधा री क्यूं हुई बावरी,रो रो नैना खोवै



सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके ( प्रदीप नील )

        सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके
        मैं नाचूं ,क्यूं ना एडी उठा के

जिस हरि को पाने खातिर,हरि हरि जग जपता है
वही हरि सुन मेरी सखी अब,मन मेरे में बसता है
       ये अखियां अब ना बाहर ताके
       सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके

गुड मिले गूंगे को जैसे,हरि को पाके ऐसा लगा
मुझे पता है कैसा लगा,पर कह ना पाऊं कैसा लगा
      स्वर्ग तो मिले री जान गंवा के
      सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके

कोई कहे मैं हुई बावरी,कोई कहे मस्तानी री
ऐसी दासी हुई हरि की,मैं पागल दीवानी री
     थकूं ना अब उसके गुण गा के
     सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके

मोहन तुम मुख मोड ना लेना ( प्रदीप नील )

तू निष्ठुर है, तू निर्मोही, फिर भी हमको जान से प्यारा
मोहन तुम मुख मोड ना लेना,तुम बिन कोई नहीं हमारा

सूरज भी आए चंदा भी आए,तुम बिन मिटे नहीं अंधियारा
मोहन तुम मुख मोड ना लेना,तुम बिन कोई नहीं हमारा

कश्ती  और खेवट भी तू ही,  तू ही सागर तू ही किनारा
मोहन तुम मुख मोड ना लेना,तुम बिन कोई नहीं हमारा
     

रिश्ते नाते सारे ही झूठे, ना कोई साथी ना  ही  प्यारा
मोहन तुम मुख मोड ना लेना,तुम बिन कोई नहीं हमारा

भक्ति की शक्ति  भी तू ही, कितनों को तुमने पार उतारा
मोहन तुम मुख मोड ना लेना,तुम बिन कोई नहीं हमारा

सांस बसे तू,प्राण बसे तू, तू ही तो जीवन  आधारा
मोहन तुम मुख मोड ना लेना,तुम बिन कोई नहीं हमारा

जल में तुम्ही हो,थल में तुम्ही हो, चारों  दिशा ही तेरा नज़ारा
मोहन तुम मुख मोड ना लेना,तुम बिन कोई नहीं हमारा

मांगू  शरण  तेरी,धूलि चरण तेरी,मोहन दे दो मुझे सहारा
मोहन तुम मुख मोड ना लेना,तुम बिन कोई नहीं हमारा





माखन चोर है नंद का लाला, गली गली में शोर री ( प्रदीप नील )

माखन चोर है नंद का लाला, गली गली में शोर री
कैसा माखन छोड सखी वो चित को चुराए चोर री।

इस सीने में होता था दिल
आज संभाला कैसी मुश्किल
बडे ज़ोर से था जो धडकता अब तो नहीं इस ठौर री
कैसा माखन छोड सखी वो चित को चुराए चोर री।

ना कोई पूछे ना ही बताए
वो कान्हा क्यूं सब को भाए
एक बार वो जिसे नचाए,उसे भाए ना कोई और री
कैसा माखन छोड सखी वो चित को चुराए चोर री।

इस कान्हा को मैं ना छोडूं
दिल का नाता ऐसा मैं जोडूं
वो जाए जिस ओर् सखी जाऊं मैं भी उस ओर री
कैसा माखन छोड सखी वो चित को चुराए चोर री।

मेरा कान्हा बडा निराला
सीधा सादा मुरली वाला
उस नटवर के साथ मैं बांधू जीवन की अब डोर री
कैसा माखन छोड सखी वो चित को चुराए चोर री।

सखी री नाचें सारी रात ( प्रदीप नील )

वो कान्हा ने बंसी बजाई,पोर पोर में मस्ती छाई
निकली तारों की बारात, रास रचाएं सारी रात
सखी री नाचें सारी रात, सखी री नाचें  सारी रात

खुलती है तो खुले पैंजनिया,गिरती है तो गिरे नथुनिया
रुकने की कोई करे ना बात,सखी री नाचें सारी रात

चुनरी गिरे तो गिरने दो,कांटा चुभे तो चुभने दो
छूटे ना नटवर का हाथ,सखी री नाचें सारी रात

धरती झूमे अंबर झूमे,राधा झूमे गिरधर झूमे
झूमे गोकुल का हर पात,सखी री नाचें सारी रात

कान्हा बंसी ज़ोर बजाओ,खुद भी नाचो हमें नचाओ
अभी तो बाकी लंबी रात,सखी री नाचें सारी रात

इतना नाचें सांसें हांफें, थक के चूर पांव भी कांपें
टूट बिखर जाने दो गात,सखी री नाचें सारी रात
वो कान्हा ने बंसी बजाई,पोर पोर में मस्ती छाई
निकली तारों की बारात, रास रचाएं सारी रात
सखी री नाचें सारी रात, सखी री नाचें  सारी रात
                                   ***

मन बोले बनवारी हरदम्, तन बोले गिरधारी ( प्रदीप नील )

मेरे नटवर नागर जब से, आया शरण  तिहारी
मन बोले बनवारी हरदम्, तन बोले गिरधारी

मन था मेरा मैला कुचैला, तुम्ही को पा के साफ हुआ
आंख खोल के चलूंगा दाता, जो बीता सो माफ हुआ
अब ना भटकूंगा रस्ते से, कसम तुम्हारी  बांके बिहारी
मन बोले बनवारी हरदम्, तन बोले गिरधारी

तुम्ही बताओ मेरे भगवन, किसने खोजा किसने पाया
मुझमें जोत समाई तेरी, मैं भी तेरे मन में समाया
मैं हूं आत्म,तू परमात्म, फर्क ही कैसा कुंज बिहारी
मन बोले बनवारी हरदम्, तन बोले गिरधारी

तेरी भक्ति ही मेरी शक्ति ,बसे रहो मेरे मन मंदिर
मैं जो गगरी,तुम हो सागर, एक ही जल है बाहर अंदर
तेरे अधर लगी मैं मुरली, तेरे बजाए बजूं मुरारी
मन बोले बनवारी हरदम्, तन बोले गिरधारी

राधा री तूने कान्हा कैसे रिझाया ? ( प्रदीप नील )

राधा री तूने कान्हा कैसे रिझाया ?
भाग मिलाई जोडी या फिर भाग से लड़ के पाया ?

उस कान्हा के दर्शन पाने, ब्रज मै चल के आई
कुंज गलियन में कान्हा कान्हा,देती रही दुहाई
मुस्काए वो दूर से छलिया,लेकिन पास ना आया
  राधा री तूने कान्हा कैसे रिझाया

पूरे ब्रज में खोज खोज के, मैं हार गई गोपाला
कदम्ब की डाली तुम्ही बताओ,कहां है मुरली वाला
उसका पता बता दो कोई, अगर किसी ने पाया
  राधा री तूने कान्हा कैसे रिझाया

इतना बडा जहान बसे पर, कान्हा बिन वीराना
धुन लगी उसकी अब ऐसी,मनवा हुआ मस्ताना
मुझे अब कैसे भाए कोई ,कान्हा नैन समाया
  राधा री तूने कान्हा कैसे रिझाया

श्याम तेरी डोर राधिके हाथ ( प्रदीप नील )

श्याम  तेरी डोर राधिके  हाथ
बनो फिरै बेशक तू जगन्नाथ

कहने को तो मोहनी मुरलिया, अधर तुम्हरे हरदम साजे
जब राधा की बजे पैंजनियां, तभी तुम्हारी मुरली बाजे
तब ये दिन देखे ना ये रात
श्याम तेरी डोर राधा के हाथ

हर गोपी को भ्रम यही के ,कान्हा तो है सिर्फ उसी का
मीरा, रुक्मण तक ये जाने,  बिन राधा तू नहीं किसी का
ना जाने कितने युगों का साथ
श्याम तेरी डोर राधा के हाथ

राधा-माधव तुम्हे पुकारें, चाहे बोलें राधेश्याम
तेरे नाम से पहले मोहन, आता है राधा का नाम
है सौ बातों की बस यही बात
श्याम तेरी डोर राधा के हाथ


आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी ( प्रदीप नील )

        

राधा बेचारी फिरे मारी मारी
छुपा है कहां मेरा बांके बिहारी
आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी,आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी।

सखियन से जाके करे अरजोई
खोज लाओ मुरलीवाला री कोई
बदले में ले लो दौलत ये सारी
आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी,आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी।

ग्वालन से पूछैं कभी जमुना पै देखें
कदंब कि डाली भी चढ चढ खोजैं
गोकुल की गलियन भी छान दीनी सारी
आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी,आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी।

फूट फूट रोए राधा आंचल भिगोए
श्याम  नहीं खोए मैंने तीनों लोक खोए
आंचल से बांधा नहीं गई मति मारी
आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी,आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी।

आया इक ग्वाला गोरे रंग वाला
बोला राधा प्यारी हमीं हैं मुरारी
मैं ही बिहारी तेरा मैं ही बिहारी 
मैं ही गिरधारी हूं  मैं ही गिरधारी। मैं ही गिरधारी हूं  मैं ही गिरधारी।


राधा  नहीं मानै ना उसे पहचानैं
मेरा कान्हा काला तू गोरे रंग वाला
चला जा यहां से नहीं तो दूंगी गारी
आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी,आजा गिरधारी तू आजा गिरधारी।

हंस के तब कान्हा ने राधा को बताया
रंग चढा तेरा अंग तूने जो लगाया
देख ज़रा दर्पण तू भी हो गई कारी
मैं ही मुरारी हूं तेरा बनवारी
देखो मेरी श्यामा  तेरा बांके  बिहारी
मैं ही गिरधारी हूं  मैं ही गिरधारी।
मैं ही गिरधारी हूं  मैं ही गिरधारी।