Sunday, January 10, 2016

सखी री नाचें सारी रात ( प्रदीप नील )

वो कान्हा ने बंसी बजाई,पोर पोर में मस्ती छाई
निकली तारों की बारात, रास रचाएं सारी रात
सखी री नाचें सारी रात, सखी री नाचें  सारी रात

खुलती है तो खुले पैंजनिया,गिरती है तो गिरे नथुनिया
रुकने की कोई करे ना बात,सखी री नाचें सारी रात

चुनरी गिरे तो गिरने दो,कांटा चुभे तो चुभने दो
छूटे ना नटवर का हाथ,सखी री नाचें सारी रात

धरती झूमे अंबर झूमे,राधा झूमे गिरधर झूमे
झूमे गोकुल का हर पात,सखी री नाचें सारी रात

कान्हा बंसी ज़ोर बजाओ,खुद भी नाचो हमें नचाओ
अभी तो बाकी लंबी रात,सखी री नाचें सारी रात

इतना नाचें सांसें हांफें, थक के चूर पांव भी कांपें
टूट बिखर जाने दो गात,सखी री नाचें सारी रात
वो कान्हा ने बंसी बजाई,पोर पोर में मस्ती छाई
निकली तारों की बारात, रास रचाएं सारी रात
सखी री नाचें सारी रात, सखी री नाचें  सारी रात
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