Sunday, January 10, 2016

सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके ( प्रदीप नील )

        सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके
        मैं नाचूं ,क्यूं ना एडी उठा के

जिस हरि को पाने खातिर,हरि हरि जग जपता है
वही हरि सुन मेरी सखी अब,मन मेरे में बसता है
       ये अखियां अब ना बाहर ताके
       सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके

गुड मिले गूंगे को जैसे,हरि को पाके ऐसा लगा
मुझे पता है कैसा लगा,पर कह ना पाऊं कैसा लगा
      स्वर्ग तो मिले री जान गंवा के
      सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके

कोई कहे मैं हुई बावरी,कोई कहे मस्तानी री
ऐसी दासी हुई हरि की,मैं पागल दीवानी री
     थकूं ना अब उसके गुण गा के
     सखी मैं तो हरी हुई हरि पाके

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