Monday, February 7, 2011

राधा गोकुल में नीर बहाए

कान्हा काहे को तू मुस्काए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे

रानी हजारों तेरी रुक्मण पटरानी
तेरे सिवा ना किसी की राधारानी
कहे मोहन कोई ढूंड  के लाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे

तेरे महल कान्हा नित ही दिवाली
राधा की तुम बिन पूनम भी काली
रो रो नैनों की जोत गंवाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे
लाखों को पार कान्हा तूने उतारा
बस जीते जी तूने राधा को मारा
फिर क्यों पालनहार कहाए रे
राधा गोकुल में नीर बहाए रे

*** प्रदीप नील  हिसार हरियाणा   09996245222***

राधा री तेरा कान्हा दे दे उधार

सखी:-राधा री तेरा कान्हा दे दे उधार
         अगर तू मुझ से करती प्यार
        राधा री तेरा कान्हा दे दे उधार
राधा:- सखी मोहे तुमसे लाख है प्यार
          मगर तू मांग ना कान्हा  उधार
सखी:- अगर मुझे तू कान्हा दे दे,में क्या उसको खा जाऊँगी
         बस थोड़ी सी छाछ पिला के, वापस तेरा दे जाऊँगी
        तू मुझ पे कर ना शक बेकार
       राधा री तेरा कान्हा दे दे उधार
राधा:- अगर तुझे में कान्हा दे दूँ सोच मेरा क्या होगा हाल
          कान्हा मेरे प्राण बसे हैं, प्राण में दे दूँ कैसे निकाल
          उतार दे मेरे सीने कटार
          मगर तू मांग ना कान्हा  उधार
         मुझे चाहे ज़िंदा छोड़ या मार
          मगर तू मांग ना कान्हा  उधार
*** प्रदीप नील हिसार हरियाणा  09996245222 ***


       

         

Sunday, February 6, 2011

कान्हा तू ही है हरजाई रे

कैसी प्रीत की रीत चलाई रे
कान्हा तू ही है हरजाई रे

राधा को रोते तूने गोकुल में छोड़ा
भोली ग्वालिन का दिल तुमने तोडा
तुम्हे  याद ना किसी की  आई  रे
कान्हा तू ही है हरजाई रे

रुक्मण बनाई फिर तूने पटरानी
दिल में बसे  लेकिन तेरे  राधारानी
तूने दोनों से की बेवफाई रे
कान्हा तू ही है हरजाई रे

मीरा ने बचपन से वर तुमको माना
लेकिन कब जोगन को तूने पहचाना
तेरे द्वारिका भी वो आई रे
कान्हा तू ही है हरजाई रे

** प्रदीप नील हिसार हरियाणा -- 09996245222

हमारी सुध ले लो बनवारी

कभी आओ गोकुल देश हमारी सुध ले लो बनवारी
तुम बिन सूनी हुई रे नगरिया राधा रो रो हारी
राधा रो रो हारी रे मोहन   राधा रो रो हारी

गए हो जब से कान्हा रे तुम जमुना भूली बहना
मोर पपीहे कह के उड़ गए बिन मोहन क्या रहना
लग के गले पेड़ों के रोए.  तेरी राधा प्यारी
राधा रो रो हारी रे मोहन   राधा रो रो हारी

खोजें तुमको मेरी नजरिया, कहीं अब लागे जी ना
तुम बिना जीना भी क्या जीना ये जीना नहीं जीना
रो रो लाल हुई ये आँखें होती थी कजरारी
राधा रो रो हारी रे मोहन    राधा रो रो हारी

भक्तों ने जब तुम्हे पुकारा दौड़े दौड़े आए
प्राणों की प्यारी तुम्हे पुकारे मोहन तू ना आए
भूला भी तो अपनी ही राधा ,कहलाए तू  त्रिपुरारी

*** प्रदीप नील   हिसार हरियाणा --- 09996245222

होरी खेलन आए री कान्हा ( प्रदीप नील )


होरी खेलन आए री कान्हा ,होरी खेलन आए
राधा छुपी क्यूँ चढ़ के अटरिया , काहे तू शर्माए

सुबह सवेरे तुमने उठकर द्वारे रची रंगोली
इतराती तुम घूम रही थी आयेंगे हमजोली
मन  की मुराद हुई तेरी पूरी हमजोली तेरे आए
होरी खेलन आए री कान्हा ,होरी खेलन आए

घेरे खड़ी कान्हा को गोपी,  देख  तेरे  बरसाने  की
लेकिन साध है कान्हा के मन तुम्हे  ही रंग लगाने की
काहे को तड़पे तू भी बावरी काहे उसे तडपाए
होरी खेलन आए री कान्हा ,होरी खेलन आए


एक बरस तू जिसको है तरसी, होली है यह होली
आज भी तुम शर्माती रही तो,होली तो फिर होली
बाहर निकल के देख सांवरिया देखें आस लगाए
होरी खेलन आए री कान्हा ,होरी  खेलन आए 

* प्रदीप नील  हिसार हरियाणा                   
09996245222

हुई चुनरिया लाल री माँ होली में ( प्रदीप नील )

बरसा रंग गुलाल री माँ होली में
हुई चुनरिया लाल री माँ होली में

में तो चढी थी छुप के अटरिया
जाने कहाँ से आया री सांवरिया
घेर लई नन्दलाल री माँ होली में 
हुई चुनरिया लाल री माँ होली में  


कितना ही रोका बचा नहीं पाई
नन्द के छोरे ने पकड़ी कलाई
बिखरे मेरे बाल री माँ होली में 
हुई चुनरिया लाल री माँ होली में  

मुझको जकड़  के आँखों में झांके
मेरी तो हलक में रुक गई साँसें
हुए गुलाबी गाल री माँ होली में 
हुई चुनरिया लाल री माँ होली में 

कितना मनाया ना माने नन्दलाला
उसने तो मां मुझे  पूरा रंग डाला
हाल हुआ बेहाल री माँ होली में 
हुई चुनरिया लाल री माँ होली में 


बरसा रंग गुलाल री माँ होली में
हुई चुनरिया लाल री माँ होली में


         प्रदीप नील
हिसार हरियाणा  09996245222



कौन सुख पायो कान्हा

         
                     कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जाई के
                      राधा को रोती छोड़ गोपियन भुलाई के
गोकुल का चैन  सुख संग अपने ले गया
ग्वाल बाल गोपियन की झोली आंसू दे गया
खुश रहते होंगे सबका जियरा दुखाई के
कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जायके
                    डोले आगे पीछे तेरे मथुरा की गोरियां
                   उनसे क्या बांकी नहीं ब्रज  की हम छोरियां
                  सच कहना हम सबकी कसम उठाई के
                  कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जाई के
मोर छपी ओढ़नी क्या दिखती है वहां पे
एक भी राधा जैसी सारी मथुरा में
खोज लेना पूरी दुनिया दीपक जलाई के
 कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जाई के
                  वहां का बिछोना अच्छा कदम्ब की या डाली
                  मथुरा की बोली मीठी ब्रज की या गाली
                 न्याय तनिक कर दो कचहेरी लगाई के
                 कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जाई के
गय्या तो होगी कान्हा,  तेरी मथुरा में
एक भी क्या दौड़ी  आती जैसे गोकुल  में
देख लेना किसी दिन बंसी बजाई के
 कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जाई के
                बैठते तो होंगे माखन थाली में सजाई के
                सोचते तो होंगे उसको हाथ में उठाई के
                 वैसा स्वाद कहाँ खाया जो चुराई के
                 कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जाई के 
नन्द गाँव बजती थी बंसी  बड़ भागन
मथुरा में जाते ही हुई  वो अभागन                                                                                                        नहीं तो क्यूँ रखा उसे ताक पे उठाई के                                                                                                कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जाई के
            बैठी वहां छोड़ी जहाँ राधा इंतजार में
             तिरलोकी हार बैठी इक तुम्हे हार के
             राह तके कान्हा तेरी पलकें बिछाई के
          कौन सुख पायो कान्हा मथुरा में जाई के
                                                                         प्रदीप नील ,  हिसार हरियाणा         09996245222
                                                                                
                                                                         

Saturday, February 5, 2011

री माँ मेरा रोने को मन तरसे ( प्रदीप नील )

                          री माँ मेरा रोने को मन तरसे
                          काश गोकुल में बादल बरसे

कान्हा झोली पीड दे गया ,जब से छुडाया उसने  साथ
ग्वालिन इतना नीर बहावे जमुना चढ़ गई दो दो हाथ
एक अभागिन मैं ही बची माँ बारिश की बदली सी डोलूं
कोई न देखे आँख का पानी बदरा बरसे जी भर रो लूँ
                      बिजुरिया चमके तो मन हर्षे
                    री माँ  गोकुल में बादल बरसे
                                 (२ )
                    मैं भटकूँ निश् दिन ठांव-कुठाँव
                    काश कोई कांटा चुभे मेरे पाँव
जब से बिछुड़ी मैं कान्हा से, भर भर आयें बैरन अँखियाँ
लाज़ की मारी रो भी न पाऊं, ताने मुझको देंगी सखियाँ
काँटा चुभ के घाव बने तो घाव उम्र भर लिए फिरुंगी
रोज बहाना ले पीड़ा का, जी भर के रो लिया करुँगी
             उम्र भर रहना है गोकुल गाँव
            री माँ लो काँटा चुभा मेरे पाँव
                            ( ३ )
              री माँ सारा गोकुल ही बिसरावै
               कि राधा गीली लकड़ी जलावै
मेरा मन और गीला ईंधन,   दोनों की ही एक दशा
अभी लगे ज्यूँ अभी जला,अभी लगे ज्यूँ अभी बुझा
ना ही जले और ना ही बुझे ये सुलग सुलग कर दे धुआं
सब नैनों को चुभे री माँ ये मेरी आँख की बनी दवा
       आँख मेरी नीर ही नीर बहावे
      राधा क्यूँ ना गीली लकड़ी जलावे