होरी खेलन आए री कान्हा ,होरी खेलन आए
राधा छुपी क्यूँ चढ़ के अटरिया , काहे तू शर्माए
सुबह सवेरे तुमने उठकर द्वारे रची रंगोली
इतराती तुम घूम रही थी आयेंगे हमजोली
मन की मुराद हुई तेरी पूरी हमजोली तेरे आए
होरी खेलन आए री कान्हा ,होरी खेलन आए
घेरे खड़ी कान्हा को गोपी, देख तेरे बरसाने की
लेकिन साध है कान्हा के मन तुम्हे ही रंग लगाने की
काहे को तड़पे तू भी बावरी काहे उसे तडपाए
होरी खेलन आए री कान्हा ,होरी खेलन आए
एक बरस तू जिसको है तरसी, होली है यह होली
आज भी तुम शर्माती रही तो,होली तो फिर होली
बाहर निकल के देख सांवरिया देखें आस लगाए
होरी खेलन आए री कान्हा ,होरी खेलन आए
* प्रदीप नील हिसार हरियाणा
09996245222
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