मोहे गोकुल ऐसो भायो सखी ,मैं तो भूल गई बरसानो री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री
कहें गोपियाँ माखनचोरी करे वो नंदकिशोर री
धर के हथेली दिल दे आई ,कैसे कहूँ चित्तचोर री
चलो ना कोई जोर री , मैं किसने देऊ उल्हानो री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो रीऐसी भई मैं श्याम की श्यामा , मैं तो हुई बडभागन री
जागत जागत खोवन लगी मैं ,सोवत सोवत जागन री
अब श्याम रहे मेरी आंखन मैं, जग दिखे बेगानों री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री
सबई कहें ठगन को ठग है ,जो है नन्द को लालो
मैं का मानू बात सखी वो मेरे है देखो- भालो
देखन मैं बेशक है कालो , वो सबने करे दीवानों री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री
प्रदीप नील ,हिसार ,हरियाणा -१२५००१
जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
ReplyDeleteलिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |
लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |
पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||
आइये शुक्रवार को भी --
http://charchamanch.blogspot.com/
सबई कहें ठगन को ठग है ,जो है नन्द को लालो
ReplyDeleteमैं का मानू बात सखी वो मेरे है देखो- भालो
देखन मैं बेशक है कालो , वो सबने करे दीवानों री
जहाँ श्याम बसे मैं बसूं वहीँ ,का पूछो हो मेरो ठिकानो री
जिन नैनं में श्याम बसें है और दूसरो भावे न ,
श्याम रंग में रंगी चुनरिया ,अब रंग दूजो भावे न .
अच्छी दीवानगी है नील साहब !ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी भी है .मीठा लिख रहें हैं आप .बधाई .
बृहस्पतिवार, ८ सितम्बर २०११
गेस्ट ग़ज़ल : सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही.
ग़ज़ल
सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही ,
साज़ सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।
इस कदर बदतर हुए हालात ,मेरे देश में ,
लोग अनशन पे ,सियासत ठाठ से सोती रही ।
एक तरफ मीठी जुबां तो ,दूसरी जानिब यहाँ ,
सोये सत्याग्रहियों पर,लाठी चली चलती रही ।
हक़ की बातें बोलना ,अब धरना देना है गुनाह
ये मुनादी कल सियासी ,कोऊचे में होती रही ।
हम कहें जो ,है वही सच बाकी बे -बुनियाद है ,
हुक्मरां के खेमे में , ऐसी खबर आती रही ।
ख़ास तबकों के लिए हैं खूब सुविधाएं यहाँ ,
कर्ज़ में डूबी गरीबी अश्क ही पीती रही ,
चल ,चलें ,'हसरत 'कहीं ऐसे किसी दरबार में ,
शान ईमां की ,जहां हर हाल में ऊंची रही .
गज़लकार :सुशील 'हसरत 'नरेलवी ,चण्डीगढ़
'शबद 'स्तंभ के तेहत अमर उजाला ,९ सितम्बर अंक में प्रकाशित ।
विशेष :जंग छिड़ चुकी है .एक तरफ देश द्रोही हैं ,दूसरी तरफ देश भक्त .लोग अब चुप नहीं बैठेंगें
दुष्यंत जी की पंक्तियाँ इस वक्त कितनी मौजू हैं -
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Thanks a lot Veerubhai and Ravikar.
ReplyDeleteThanks for visiting my blog
aaz hindi fonts kaam nahi kar rahe
pardeep neel
हिन्दी में था निमंत्रण, बिगत बार भी मित्र ||
ReplyDeleteचर्चा मंच पे आइये, कहाँ गए अन्यत्र ??
http://charchamanch.blogspot.com/
कृष्णमय करती प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुून्दर प्रस्तुति!
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